वो हमें हर पल सताने लगे हैं
रात-दिन याद आने लगे हैं
वो हमें हर पल सताने लगे हैं
क्या करें नींद में अब भला हम
ख़्वाब उनके ही आने लगे हैं
आ रहे हैं ख़बर आ गई है
तब से मौसम सुहाने लगे हैं
झूठ बोला फ़क़त एक पहले
सैंकड़ों फिर बहाने लगे हैं
हर सितम सह लिया हमने हंसकर
अब सितम और ढाने लगे हैं
प्यार है बात बस दो पलों की
भूलने में ज़माने लगे हैं
– डॉ आनन्द किशोर