वो परिन्दा…….
मुश्क़िलों को बयान क्या करता
हादसों का बखान क्या करता
राहे-उल्फ़त ज़रा सी मुश्क़िल थी
वो हुआ इम्तिहान क्या करता
मुद्दतों क़ैद में रहा था जो
वो परिन्दा उड़ान क्या करता
सोने-चाँदी से थी बनी बेशक़
थी न तलवार, म्यान क्या करता
झूठ जीता कई दफ़ा बाज़ी
सच भी था बेज़बान क्या करता
साँस उखड़ी थी बाल बिखरे थे
वो हक़ीक़त बयान क्या करता
सो गया क्यों सफ़र के बीच में तू
हो रही थी थकान क्या करता
फिर जिताया है सब्र ने मुझको
थी तो मुश्क़िल में जान क्या करता
राह ‘आनन्द’ क्यों वो पकड़ी थी
थे क़दम के निशान क्या करता
#स्वरचित
डॉ आनन्द किशोर
दिल्ली