वो नज़ाकत नही छोड़े हैं
हर सितम सह मुहब्बत नही छोड़े हैं
जग करे कुछ भी चाहत नही छोड़े हैं
जग सताता रहा यूँ मुझे हर घड़ी
देखिये हम शराफत नही छोड़े हैं
वो गई छोड़ हमको मगर क्या करें
राह तकने की आदत नही छोड़े हैं
ज़ख्म तूने दिए हैं मुझे उम्र भर
हम तुम्हारी हिफाजत नही छोड़े हैं
जान ले ले मेरा तू बड़े शौक से
इश्क की हम रवायत नही छोड़े हैं
पूजते हैं सभी तो ख़ुदा को यहाँ
हम तुम्हारी इबादत नही छोड़े हैं
बस उठाते रहे नाज़ उनके सभी
आज भी वो नज़ाकत नही छोड़े है
– “अश्क़”