वो एहसास सारे
वो एहसास सारे
वो जज़्बात सारे
जो अब तक न हमनें
खुद से कहें हैं
लिखना तो चाहा था
लफ़्ज़ों में लिख दें
खुद को इजाज़त
नहीं दे सके है
समझी है तुमने
खामोशी मेरी
पढ़ भी लिया है
मेरे अनलिखे को
मतलब भी उनका
समझा है तुमने
जो अल्फ़ाज़ मैने
न अब तक लिखें हैं ।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद