वो एक सर्द रात
इस कहानी के सभी पात्र और घटनाए काल्पनिक है, इसका किसी भी व्यक्ति या घटना से कोई संबंध नहीं है। यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा।
वो एक सर्द रात
हम यहां मनाली घूमने आए थे, हमारी अभी-अभी शादी हुई थी मेरा नाम जैन फ़ाक़री और हमारी बेगम का नाम शादिया फ़ाक़री हम वहां होटल drilbu में रुके हुए थे। हमने वहां पूरा घूम लिया तो अब हम होटल से चेक आउट कर के कुल्लू जा रहे थे । रास्ते मे गाड़ी अचानक धड़ धड़ की आवाज करने लगी मैंने गाड़ी रोकने की सोची पर बेगम साहिबा ने कहा कि यहां पर गाड़ी न रोको आगे किसी टपरी या दुकान के पास रोको मुझे चाय पीनी है । मैंने देखा आगे पास में एक टपरी मिली और इत्तफाकन वो टपरी चाय और खारी,नमकीन बिस्कीट की ही निकली मैने वहां साइड में गाड़ी लगा दी । अरे बापरे क्या कहने ठंड इतनी थी कि पूछो ही मत अब आप सभी को पता है कि मनाली की सर्दी कैसी होती है।
अब मैंने जैसे ही गाड़ी बन्द की वो अब स्टार्ट होने का नाम ही नही ले रही थी। पर ये बात तब पता चली जब हम चाय नास्ता कर के फिर वहां से निकलने के लिए गाड़ी में आकर बैठे और फिर मैंने चेक किया बोनेट उठाकर पर अब आप सभी को पता है । जिन के यहां गाड़ी होती है उन्हें थोड़ा तो नॉलेज होता है गाड़ी की क्या खराब है कहा से आवाज आ रही है। पर हमारे यहां तो गाड़ी नही थी मैने अपने दोस्त आरिफ से उधार माँग के लाया था । अब मुझ अनपढ़ को क्या पता मैं कौन सा मोटर मेकेनिक या इंजीनियर हू। मुझे कहा कुछ पता था फिर भी बोनेट उठाकर चेक कर रहा था जैसे मुझे सब आता हो।
अब क्या उधर से बेगम भड़क कर बोली क्या हुआ कार स्टार्ट क्यु नही करते यहां से चलना नही है क्या मैंने कहा जाना तो है बेगम पर कम्बख़्त ये स्टार्ट ही नही हो रही ।
तो बेगम ने कहां अच्छा बाबू सुनो यूँ गाड़ी के सामने डिग्गी खोलकर देखने से वो क्या स्टार्ट हो जाएगी ।
प्यार से ताना तो मार दी मुझे पता था नही होगा स्टार्ट पर क्या करता मेरा दिमाग़ काम करना बन्द कर दिया था।
फिर बेगम गाड़ी से बाहर आकर सीधे टपरी वाले के पास जाकर बोली भाई सुनो गाड़ी स्टार्ट नही हो रही कही पास में कोई मैकेनिक मिलेगा ।
उसने कहा यहां पास में तो नही पर गाँव के अंदर जरूर है ।और उसने अंदर से अपने बेटों को आवाज लगाई और कहा जाकर तुम अपने चचा जान को बुला लाओ बड़ी गाड़ी का काम आया है बोलना पापा बुला रहे है जल्दी आना ये बोल देना ।
उनका लड़का दौड़ के भाग रहा था। उनके पापा ने आवाज दी अरे सुन भाग के कितना दूर जाएगा सायकल ले जा।
अब जैन अपनी बेगम से बहुत खुश हुआ उसे लगा कि काफी दिमाग़ वाली से मेरा निक़ाह हुवा है। मुश्किल वक्त में भी इतना तेज शार्प सोचती है। क्या बात है। बेहद ही फक्र और खुशी हो रही थी ।
अब इधर ठंड बढ़ रही थी रात को यहां सर्दी काफी होती है ।
मैकनेकी आया और प्राब्लम ठीक करते करते रात होने को आ गई । उधर टपरी वाला हमसे बातें करने लगा और देखो हम जहां रुके वो भी कास्ट में शेक मुस्लमान था। । सब के नाम बताये और उन्होंने मेरी बेगम को आपा जान भी कहा और एक रिश्ता बन गया अनजान लोगों में रिश्ते की सुरुवात ऐसे ही होती है। ठंड ज्यादा थी वो हमें अंदर आने को कहने लगे हम उसने घर के अंदर गए वो अंदर उनका घर और बाहर उनका दुकान था। उनकी बेगम प्रेग्नेंट थी । हमने हाल चाल पूछा और
हमने जो फल लिए थे वो उन्हें दे दिए और क्या बस बातें होने लगी समय का पता नही चला । गाड़ी ठीक हो गई हम वहां से निकलने वाले थे । तो आरिफ ने कहा अगर आप को दिक्कत न हो तो आज आप यही रुक जाए रात हो गई है । हमने कहा नही भाई हम निकलते है ,और आप को परेशान नही करेंगे हम वहां होटल में रुक जायेगे । आरिफ भाई आप का बहुत बहुत धन्यवाद जो आप ने हमारी इतनी मदद की।
हम कुछ पैसे उनके बच्चो को दे रहे थे पर उनके बच्चे पैसे लेने से मना कर दिए। अब हम गाड़ी में जैसे ही बैठे निकलने ही वाले थे कि अंदर से उनकी बेगम हजरत चिल्लाने लगी उसे लेबर पेन हो गया था। मेरी बेगम शादिया भाग के गई और उसके पास जाकर कुछ पूछा और फिर इस बार वो विपरीत परिस्तिथियों में अपनी दिमाग़ को दौड़ाने लगी और कहा आप एम्बुलेश को फोन मत करो उनके आने तक देर हो जाएगी हमारी गाड़ी ठीक हो गई है इसी में लेकर चलते है । और हम तुंरत वहां से निकल कर कड़ी सर्दी में हॉस्पिटल की ओर चल निकले आरिफ ने रस्ता बताया हम कुल्लू को निकल गए।
हम जहां रुके थे वो बन्दरोल था और वहा से कुल्लू की सफर 11 किलोमीटर का पर वो सर्द रात पूछो ही मत हाथ जमने लगी तो मेने सोचा मुझे इतना लगा रहा है तो उनकी बेगम हजरत का क्या हो रहा होगा गाड़ी का हीटर आन कर दिया गाड़ी की कांच तो सारी ही बंद थी । अब ठंड का पता नही
चला रहा था फिर भी वहाँ की ठंड इतनी है कि हीटर के पास बैठ कर भी आप को ठंड लगती है।
इलाज हो गया सब कुछ अच्छा-अच्छा हो गया माँ बच्चा दोनों सलामत थे उनको लड़की हुई थी वो खुश थे । और मेरा शुक्रिया अदा कर रहे थे । फिर मैंने अपनी बेगम को सारी बात बताई जो वो आरिफ के यहां रुकी थी उनके बच्चों की देख रेख में।
दूसरे दिन शाम को डिस्चार्ज पेपर तैयार कर के मैने आरिफ को बिना बातये पैसे भर दिए। हम वहां से निकले उनके घर आये और उस दिन फिर रुक कर अगली सुबह वहां से मनाली आ गए।
©® प्रेमयाद कुमार नवीन
जिला – महासमुन्द (छःग)