वो अगर चाहे तो पौदा भी शजर बनता है
उसकी रहमत से तो सहरा भी नगर बनता है
वो अगर चाहे तो पौदा भी शजर बनता है
उम्रभर की है कहानी न कोई इक दिन की
आदमी वो है जो इन्सान अगर बनता है
प्यार का सबसे बड़ा इसमें दखल है होता
पहले बनता है मकां बाद में घर बनता है
ग़ल्तियाँ जो भी रहीं अब तो नदामत है उसे
उसकी नज़रें हैं झुकी इतना असर बनता है
आरज़ू जीत की रखते हैं ज़माने में मगर
जीत के बाद ही मशहूर बशर बनता है
हमसफ़र साथ में हो और हसीं मौसम हो
कितना आसान मुहब्बत का सफ़र बनता है
प्यार पाया तो ज़माने ने कहानी लिख दी
दिल में अब रोज़ धुवाँ शामो-सहर बनता है
रोक सकता न किसी की भी तरक्की कोई
सच में किरदार ही बेदाग़ अगर बनता है
अब शिकायत भी न ‘आनन्द’ करो इतनी भी
चोट खाकर ही तो मज़बूत जिगर बनता है
शब्दार्थ:- नदामत = पछतावा
डॉ आनन्द किशोर