वोट की राजनीति
फिर से खेला खेल पुराना, दीन धर्म बन गया खिलौना
जाने किसने आग लगाई, मेरा घर जल गया सुहाना
नाम नया है खेल पुराना, बोट बना है शाही खजाना
तूती बजा बजाकर अपनी, लूट रहा है आज जमाना
एक सांप एक नागनाथ है, कुछ- तो इनके भी बाप है
सिंहासन के सभी पुजारी, जनता मारी गई बिचारी
सत्ता लोलुप दुर्योधनों ने, मानवता की जांघ उघारी
प्रजातंत्र का बजा है बाजा, न्याय मिलेगा तुझेभीआजा
अंधी प्रजा काने राजा, चाहे जो तूफान मचा जा
तू भी गढ़ ले नई कहानी, भारत की जल जाए जवानी
बेकारी के दौर में बंधु, सस्ते में होगी कुर्बानी
बिन दहेज कुमारी है मीना, दीनू का दुश्मन है जीना
खाली पेट है आज रिहाना, रहमत कैंसे खाए खाना
फिर कैसे हम मर मिट जाएं, क्यों धर्म पर लड़ जाएं
खुद को ही जब चैन नहीं है, आग पाप की क्यों लगाएं
हे नेताजी बंद करो, मुफ्त में ही ना तंग करो
देना ही है तो दे जाओ, नंगे भूखों को खाना
भारत में फिर से आ जाए, रामराज का सपन सलोना