वीरानी लक्ष्मीबाई
चमक उठी तलवार हाथो में
मुख में आभा सा दमक उठी
जब दुश्मन पर नज़र पड़ी
ह्रदय में एक ज्वाला जाग उठी
देखो दुश्मन थर्र थर्र काँप उठा
मर्दो की तरह लोहा लेतीं थी
देखो वो कितनी मर्दानी थी
बचपन से ही दक्ष निपुण थी
खूब तलवार बाजी करती थी
अपने राज्य पे पड़ने वाली,
नज़र को चीरने का दम भरती थी
अंग्रेजो के छक्के छुड़ाये
अंतिम सांस तक वार किया
खुद जीवन से हार गयी
लेकिन खुद को ना तार किया
फक्र हमे हैं,बुंदेली धरती को
जिसने कर्मो से सर ऊँचा किया
शीश नमन उस वीरानी पर
मातृभूमि पर जिसने जीवन हार दिया
खून में उसके कितनी रवानी थी
वो तो झांसी वाली रानी थी!!
®आकिब जावेद