वीरांगना रानी अवंती बाई बलिदान दिवस
१६ अगस्त सन १८३१में सिवनी मध्यप्रदेश जन्मी, वीरांगना रानी अवंतीबाई थीं
रामगढ़ राजा विक्रमादित्य संग विवाह हुआ,राज की बागडोर अपनाई थी
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में जिनने, अंग्रेजों से लड़ी लड़ाई थी
सन१८५७ में गोंड राजा ने, क़ांति का विगुल बजाया था
अंतिम सांस तक लड़ते लड़ते,अपना सर्वस्व चढ़ाया था
मंडला राजा शंकर शाह, रघुनाथ शाह को,अंग्रेजों ने तोप से बांध उड़ाया था
रानी अवंतीबाई ने राजा राजबाड़ों, को पत्र लिखा
एक एक अक्षर देश प्रेम भरा,आज भी हमको रहा सिखा
कमर कसो अब देश की खातिर,या पहन चूड़ियां बैठो
मातृभूमि की रक्षा के खातिर,आ जाओ चुप न बैठो
रानी ने नेतृत्व किया, चिंगारी रामगढ़ मंडला संपूर्ण क्षेत्र में फैल गई
अंग्रेज़ों की नींद हराम हुई, मंडला में गोरी पलटन परास्त हुई
मंडला की रक्षा का दायित्व, रानी ने खूब निभाया
प्रतिशोध रानी से लेनें अंग्रेजों ने,रीबा राजा से हाथ मिलाया
रामगढ़ पर कर दिया था हमला, वीरांगना ने संज्ञान लिया
२० मार्च १८५८ में, रानी से भीषण युद्ध हुआ
रणचंडी बन गई थी रानी, अंग्रेजों को नुक्सान हुआ
अंग्रेजी बिशाल सेना को, पीछे हटने मजबूर किया
आधुनिक हथियार बिशाल सेना ने, रानी को जब घेर लिया
हार न मानी रानी ने, रणचंडी ने जयघोष किया
छोड़ो अंग्रेजों मातृभूमि,धोखे से तुमने कब्जा किया
जब रानी को आभास हुआ, अब अंग्रेजों से न बच पाऊंगी
लेकिन अंतिम सांस तक मैं,हाथ न उनके आऊंगी
अपनी ही तलबार से अपनी गर्दन, रानी ने काट सिर चढ़ा दिया
मातृभूमि को किया समर्पित, प्राणों का बलिदान दिया
वीरांगना अवंतीबाई के चरणों में कोटि कोटि नमन।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी