*विहग (कुंडलिया)*
विहग (कुंडलिया)
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उड़ते नभ में हैं विहग ,दोनों पंख पसार
मानो जाना चाहते ,दुनिया के उस पार
दुनिया के उस पार ,सदा मस्ती में जीते
इन्हें सुहाती वायु ,घूँट – भर जल बस पीते
कहते रवि कविराय ,जिधर मनचाहा मुड़ते
मिलता गगन असीम ,दूर ऊँचे तक उड़ते
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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विहग = पक्षी