विष दिया प्याले में उसने सामने ही घोलकर
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दिल दुखाया फिर किसी ने राज़ मेरे खोलकर
विष दिया प्याले में उसने सामने ही घोलकर
चुपके से आया था मेरीे जिंदगानी में कभी
जा रहा है आज मुझको जाने क्या क्या बोलकर
झुर्रियां चेहरे पे दस्तक दे रही हैं दिलरुबा
फायदा क्या तेरे आगे पीछे यूँ ही डोलकर
मैं भी झुक जाता अगर वो बात करता प्यार से
मेरी सुनता अपनी कहता नाप कर औ तोलकर
दूसरों की ग़ल्तियों पर क्यूं उठाता उँगलियां,
इस से पहले तू रजत ख़ुद अपना भी तो मोल कर.
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गुरचरन मेहता :रजत: