विषय-हारी मैं जीवन से।
विषय-हारी मैं जीवन से।
शीर्षक-बेटी जीवन में हारी।
विद्या-कविता।
रचनाकारा-प्रिया प्रिंसेस पवाँर
मिलता है जीवन,जीने के लिए।
है जीवन,सुख रस पीने के लिए।
कभी मिलती खुशी,
कभी गम मिलता है।
मिलता कोई पराया,
तो कभी सनम मिलता है।
मुझे तो मिले बस दर्द,
हर सुख में वहम मिलता है।
दुःखी इंसान को तो बस, दुःखी जन्म मिलता है।
हारी मैं जीवन से,
जीवन हर पल हार है।
न कोई मुस्कान मेरी,
न कोई उपहार है।
बस अश्क ही मेरे,
न कोई प्यार है।
जीवन के हर पल पर,
दुःखों का वार है।
न रही वो माँ अब,
जो दुनिया हमारी थी।
जिसका सम्मान थी मैं,
जिसकी मैं प्यारी थी।
जीना चाहती थी माँ,
पर वो हारी थी।
माँ हारी जीवन से,
बेटी जीवन में हारी थी।
क्यों जीवन में सच हारता,झूठ जीतता है?
दर्द वही जाने,
जिस पर दुःख बीतता है।
हारी मैं जीवन से,
जिसमें दुःख जीतता है।
अब जीवन मैं संघर्ष होता नहीं।
सभी तो पराये,कोई अपना होता नहीं।
हारी मैं जीवन से ऐसे अब…
हारने पर दिल रोता नहीं।
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
स्वरचित,मौलिक
द्वारका मोड़,नई दिल्ली-78
सर्वाधिकार सुरक्षित।