विषय: विरहा की बरसात।
विषय: विरहा की बरसात।
धड़कनें मिलन की चाह करती,
प्रियतम साथ नहीं होता।
हर धड़कन आह भरती, हाथों में हाथ नहीं होता।
जब होती तन्हाई,
विरहा की बरसात होती है।
न खुशी और न कोई मुस्कान साथ होती है।
न नजरें प्यार की मिलती,
न दिल की कली खिलती।
दिल थम-सा जाता,
न कोई धड़कन चलती।
दिल प्यार के लिए बना,
ये विरह सह नहीं पाता।
बिन अपने प्रेमी के दिल,
अकेले रह नहीं पाता।
अकेले बरसात का मौसम,
विरहा की बरसात बन जाता।
सुने होते हैं दिन,
सुने होते हर पल छिन।
विरहणी बने बरसात भी,
अपने सजन के बिन।
विरहा की बरसात में तारें भी न,
जो काट लूं तारें गिन-गिन।
न छम-2 पायल,न कंगन खनके,
न श्रृंगार रुत आती है।
बिन प्रिय के बरसात,
अंगार बरसाती है।
अकेले बरसात का मौसम न अपना,
कहां बरसात भाती है?
रोते हैं नयन पल-पल,
धड़कन तड़प जाती।
बरसात में साथ न पिया,
आह को भी आह आती।
सिसकता कतरा-कतरा,
जब सुनी बदरी छाती।
पीर न कही,न सही,
ऐसे याद सताती ।
प्रेम है परदेशी तब बरसात भी,
विरहा की बरसात बन जाती।
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
स्वरचित,मौलिक
द्वारका मोड़,नई दिल्ली-78
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