विषय-मानवता ही धर्म।
विषय-मानवता ही धर्म।
शीर्षक-वही इंसान है।
विद्या-कविता।
रचनाकार-प्रिया प्रिंसेस पवाँर
मानवता ही धर्म,
यही सत्य है।
बाकी सब हे प्राणी,
मिथ्या कथ्य है।
मानवता ही धर्म,
यही पूर्ण पथ्य है।
सभी धर्म मनुष्य को,
प्रेम सिखाते हैं।
मानवता का सत्य रूप,
दिखाते हैं।
मानवता ही धर्म,
इंसान ही निभाते हैं।
वही इंसान है जो,
मानवता ही धर्म समझता है।
जो न किसी आडम्बर में, उलझता है।
मानव धर्म के अतिरिक्त,
न उलझता-सुलझता है।
मानवता का ज्ञान गीता,
मानवता दर्शन रामायण।
मानवता ही धर्म अपना,
बनता शुद्ध वातावरण।
जीवन बने इससे उत्कृष्ट,
महकता है पर्यावरण।
मानवता ही धर्म की रीत,
जो समाज अपनाता है।
वही आज और कल में,
सुख की प्रीत लाता है।
मानवता ही धर्म का आशीर्वाद,जो भी पाता है।
वही इंसान है, वही इंसान कहलाता है।
प्रिया प्रिंसेस पवाँर
स्वरचित,मौलिक
द्वारका मोड़,नई दिल्ली-78
सर्वाधिकार सुरक्षित