*विश्वास *
*विश्वास *
धीरे धीरे कर विश्वास।
अगले को भी हो अहसास।।
नहीं अचानक बढ़ना यार।
एकाएक करो मत प्यार।।
सावधान हो करना काम।
जल्दबाज़ का काम तमाम।।
क्रमशः जिसकी उत्तम चाल।
वही सफल मानव मतवाल।।
मन को स्थायी रखना मीत।
चलते रहना गाते गीत।।
य़ह गीता का उत्तम सार।
चरैवेति ही वेदोच्चार।।
सोच समझ का बौद्धिक ज्ञान।
सहज बढ़ाता हार्दिक मान।।
संबंधों का हो सत्कार।
तभी बनेगा जग परिवार।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।