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14 Sep 2022 · 1 min read

विश्वास की मंजिल

अब तो रुक ही गये,
अपनी मंजिल की छाँव में,
सुकून मिला है अब जाकर,
मिल ही गया ठहराव जब।

खुशी का एहसास जो उठा,
कितने संघर्षों के पश्चात् अब,
खोजने को मंजिल अपनी,
रुका नहीं दिन रात जब।

सुनाई जाएंगी अब सफलता की कहानी,
जिनकी कश्ती बह रही बीच मझदार में,
हौंसला न टूटे उनका भी अब,
जिन्होने संकल्प लिया है करेंगे पार तट।

सपनो की मंजिल हकीकत में है सामने,
वो हकीकत ही था खोज लिया विश्वास से,
असफलता और सफलता की विश्वास है कड़ी,
डूबना और पार पा लेना जीवन की है लड़ी।

रचनाकार –
✍🏼✍🏼
बुद्ध प्रकाश
मौदहा हमीरपुर।

4 Likes · 2 Comments · 470 Views
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