विश्वास और दर्शन
दुखी आदमी, सुख खोजने को माध्यम खोजता है.
वह हर बार खाली हाथ ही बाहर लौटता है.
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प्रवचन, सत्संग, कथा सुनने हर जगह से खाली,
और ज्यादा दुखी लौटता है,क्योंकि मिलता कुछ नहीं.
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वह इंद्रिय वशीभूत होकर भागते रहता है.
उसे विश्राम चाहिए, वह एक से प्राप्त नहीं होता.
रूककर कभी सोचता तक नहीं,
आखिर हो क्या रहा है.
आसमान से गिरता है.
खजूर पर लटक जाता है.
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विश्वास की कमी के कारण उसे.
जो है वह दिखाई नहीं देता.
वह वो देखता है.
जिससे उससे किसी का ग्राहक बन जाये.
और वह नीचे गिरता जाये.
उसमें हौसले न धर्म पैदा करते.
न ही कर्मानुबंध से कुछ प्राप्त कर पाता.
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और वह कोशिश करना छोड देता है.
सब चीजों/तथ्यों को नकार देता है.
यहाँ तक खुद को भी.
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अब पहुंच गया, सही स्थान पर.
अब वह अपाहिज नहीं है.
उसे लगा वह चल सकता है.
आज पहली बार खुली हवा
खुले आसमान में
उंमुक्त विचारों के संग जी रहा है.
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वह अतीत को देखकर कौंध तो जाता है.
पर वर्तमान ने उसे,
ऐसा मंत्र दिया.
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डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस