विशुद्ध हिन्दी गीतकार-ग़ज़लकार डॉ. कुंअर बेचैन भी छोड़ गए!
भारी दुःख के साथ यह कहना पड़ रहा है कि देश के जाने-माने कवि कुंवर बेचैन जी का आज बृहस्पतिवार को निधन हो गया। उनका नोएडा के कैलाश अस्पताल में कोरोना का इलाज चल रहा था। कवि कुंवर बेचैन जी व उनकी पत्नी संतोष कुंवर जी दोनों कोरोना संक्रमित हो गए थे। इन दोनों की इसी 12 अप्रैल को कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। अतः दोनों दिल्ली के लक्ष्मीनगर स्थित सूर्या अस्पताल में भर्ती किये गए थे। हालत में सुधार नहीं होने पर बाद में डॉ. कुंवर बेचैन को आनंद विहार स्थित कोसमोस अस्पताल में शिफ्ट किया गया था। मगर उधर भी उनकी हालत गम्भीर बनी हुई थी, अतः सोशल साइट पर मदद मांगी गई तो नोएडा के कैलाश अस्पताल के सर्वेसर्वा आदरणीय महेश शर्मा ने मदद की, उनको अपने अस्पताल में बेड दिलवा दिया, जबकि उनकी पत्नी की हालत स्थिर बनी हुई है। वह अभी भी सूर्या अस्पताल में ही भर्ती हैं। पूरे हिन्दी जगत में डॉ कुंवर बेचैन के आकस्मिक निधन से शोक का माहौल है।
डॉ. कुँवर बेचैन जी से मेरा परिचय सुरन्जन जी ने यह कहकर करवाया, “डॉ. साहब, “ये महावीर उत्तरांचली हैं। आजकल एक पुस्तक सम्पादित कर रहा हूँ, ‘तीन पीढ़ियाँ: तीन कथाकार’ प्रेमचन्द, मोहन राकेश जी के साथ इनकी भी चार प्रतिनिधि कहानियाँ पुस्तक में संकलित हैं।” यहाँ पाठकों को बता दूँ कि उन दिनों सुरन्जन जी त्रैमासिक पत्रिका निकलते थे, जिसका नाम था “कथा संसार”…. जिसका आगामी अंक “डॉ. कुंवर बेचैन पर केन्द्रित था।” सुरन्जन के सुपुत्र पंचम के जन्मदिन के शुभ अवसर पर पत्रिका के सह संपादक अनूप सिंह जी और मैं भी मौजूद था। हमने एक साथ ही जन्मदिन मनाया और भोजन भी किया। कवि नगर, गाज़ियाबाद से ही एक और बड़ी साहित्यकार लीलावती बंसल जी भी थीं, जो बाद में अपने पुत्रों के साथ अमेरिका बस गई थीं। इन पर भी कथा संसार का एक विशेषांक सुरन्जन जी ने निकला था। लीलावती जी के घर, कवि नगर में एक काव्य गोष्ठी आयोजित हुई। जिसमें भी डॉ. कुँवर बेचैन जी ने अपनी रचनाएँ पढ़ीं थीं। सुरंजन जी, रमेश प्रसून जी, अनूप सिंह जी, मंगल नसीम जी व ग़ाज़ियाबाद के बहुत से कवियों ने इस गोष्ठी में समा बांधा था। डॉ. बेचैन पर मैंने एक छोटा सा आलेख भी लिखा था—”हिन्दी के मीर-ओ-ग़ालिब हैं डॉ. कुंवर बेचैन”, जो कथा संसार में छपा था। जिसे डॉ. साहब ने काफ़ी पसन्द भी किया था।
आपका मूल नाम कुँअर बहादुर सक्सेना है। जन्म: १ जुलाई १९४२ को ग्राम उमरी ज़िला मुरादाबाद में हुआ। उनकी शिक्षा: एम. काम., एम. ए., पीएच. डी. तक रही। महाविद्यालय में प्रोफ़ेसर रहे। उन्होंने अनेक बार विदेश यात्राएँ की हैं और अनेक महत्वपूर्ण संस्थानों के साहित्य सम्मानों द्वारा सम्मानित हुए हैं।
डॉ कुंवर बेचैन की प्रमुख कृतियाँ हैं:—उनके सात गीत-संग्रह क्रमानुसार इस प्रकार हैं—”पिन बहुत सारे” (1972); “भीतर साँकलः बाहर साँकल” (1978); “उर्वशी हो तुम” (1987), “झुलसो मत मोरपंख” (1990); “एक दीप चौमुखी” (1997); “नदी पसीने की” (2005); “दिन दिवंगत हुए” (2005)। तो उनके ग़ज़ल-संग्रहक्रमानुसार इस प्रकार हैं—”शामियाने काँच के” (1983); “महावर इंतज़ारों का” (1983); “रस्सियाँ पानी की” (1987); “पत्थर की बाँसुरी” (1990); “दीवारों पर दस्तक” (1991); “नाव बनता हुआ काग़ज़” (1991); “आग पर कंदील” (1993); “आँधियों में पेड़” (1997); “आठ सुरों की बाँसुरी” (1997); “आँगन की अलगनी” (1997); “तो सुबह हो” (2000); “कोई आवाज़ देता है” (2005) और उनके कविता-संग्रह क्रमानुसार इस प्रकार हैं:—”नदी तुम रुक क्यों गई” (1997); “शब्दः एक लालटेन” (1997). इसके अलावा उनका एकमात्र महाकाव्य—”पाँचाली” था।