*विवेक*
जहाँ विचार मन्त्रणा जहाँ सुसत्य मंथना।
जहाँ सुचारु भावना जहाँ सप्रेम वंदना।
जहाँ असत्य हारता अजीत सत्य चिंतना।
वहीं विवेक जागता सदैव आत्म नंदना।
जहाँ भला बुरा पृथक सदैव दिव्य न्याय है।
अधर्म धर्म से अलग असत्य मृत्यु प्राय है।
उचित विचारणीय है मनुष्यता सही दिखे।
वहीं विवेक लेखनी लिये कवित्त को लिखे।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।