*विवाह के तीन दशक बाद ( कहानी )*
विवाह के तीन दशक बाद ( कहानी )
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विवाह के तीन दशक जब पूरे हुए ,तब मालविका और आनंद ने उसे एक समारोह के रूप में मनाने का निश्चय किया । दोनों की आयु अब साठ वर्ष की थी और तीस साल पहले उनकी शादी हुई थी । आनन्द सरकारी नौकरी से रिटायर हो चुका था । मालविका एक गृहणी के तौर पर घर के कामों में व्यस्त रहती थी। दोनों का जीवन हँसी – खुशी के साथ व्यतीत हो रहा था । दो बच्चे थे ,जो अपने अपने काम – धंधे से लग चुके थे तथा उनके विवाह भी हो चुके थे ।एक लड़का तथा एक लड़की थी । दोनों प्राइवेट कंपनी में जॉब करते थे।
समारोह में काफी लोग जुटे थे। आनंद ने इस अवसर पर मंच पर एक संगीत का कार्यक्रम भी रखा था । उसी के मध्य में वह मालविका को लेकर मंच पर पहुँचा और उसने सबको बताया कि अब हमारी जिंदगी रिटायर लोगों की तरह बीतेगी और हम सुख-चैन के साथ घर पर ही पेंशन के साथ गुजारा करेंगे । दोनों ने कहा कि वह अपने जीवन और उनकी उपलब्धियों से खुश हैं।
समारोह में घूमते – घूमते मालविका से उसकी बचपन की साथी देवकी टकरा गई। देवकी ने मालविका को बाहों में भर लिया। और कहा “अब तो तुम्हें 30-40 साल के बाद गौर से देख रही हूँ। थोड़ा देखने दो।”
मालविका ने मुस्कुरा कर कहा “क्या देख रही हो ?”
देवकी ने कहा “बुरा न मानो तो एक बात कहूँ ?”
“कहो……”
” तुम अपनी उम्र से 10 साल ज्यादा बूढी लग रही हो ! ”
सुनकर वास्तव में मालविका को बुरा लगा । उसने भीतर ही भीतर अपने आप पर नजर डाली और कहने लगी “अब मुझे बन-सँवरकर करना भी क्या है ? 60 साल की उम्र हो गई । 30 साल शादी को हो गए । बच्चे ब्याह गए । अब तो हम नाती – पोते वाले हैं । क्या सजना और क्या न सजना ! अब बुढ़ापे में यह कोई दूसरी शादी थोड़े ही कर लेंगे ! ”
सुनकर देवकी खिलखिला कर हँस पड़ी । तभी आनंद भी आ गया और हँसती हुई देवकी के पास आकर खड़ा हो गया । एकटक उसकी नजर देवकी के मुस्कुराते हुए चेहरे पर टिक गई । मालविका को कुछ अजीब सा लगा । लेकिन उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया । “सुनिए यह मेरी बचपन की सहेली है ,देवकी । कई साल बाद मिलना हुआ है ।” मालविका ने आनंद से कहा और फिर देवकी को आनंद के पास छोड़कर वह कुछ अन्य लोगों के साथ बातचीत में व्यस्त हो गई । देवकी और आनंद काफी देर तक एक दूसरे से बातें करते रहे।
यद्यपि देवकी की आयु भी उनसठ वर्ष हुई थी लेकिन उसका अपने स्वास्थ्य के प्रति विशेष ध्यान रहता था । इसीलिए वह सच पूछो तो पचास से ज्यादा की नहीं लगती थी। थोड़ी देर में मालविका घूमफिर कर वहीं वापस आ गई । अभी भी देवकी और आनंद बातचीत में व्यस्त थे ।
“कमाल है ! इतनी देर हो गई आप अभी तक यहीं पर हैं ? ” मालविका ने आश्चर्य से आनंद से पूछा । आनंद ने इस पर यह कहा ” देवकी जी को कल अपने घर पर बुलाओ। वहीं पर बैठ कर आराम से बातें करेंगे। तुम्हारी सहेली तो बहुत अच्छी बातें करती हैं।”
सुनकर मालविका को कुछ अजीब – सा लगा ।उसकी समझ में नहीं आया कि वह देवकी को घर बुलाए अथवा न बुलाए। लेकिन फिर भी उसने देवकी को अगले दिन घर आने का निमंत्रण दे ही दिया । देवकी ने बिना देर किए निमंत्रण स्वीकार कर लिया। कहा ” मैं कल शाम पाँच बजे तुम्हारे घर पहुँच जाऊँगी।”
मन ही मन मालविका सोचने लगी, यह तो बहुत अशिष्ट है । जरा सा हमने कहा और उसने तो हामी भर दी। मैंने तो केवल औपचारिकता निभाने के लिए उससे कहा था । उधर आनंद के चेहरे पर एक चमक आ गई थी, जिसे मालविका महसूस तो कर रही थी लेकिन बहुत ज्यादा गहराई में वह भी नहीं जा पाई।
अगले दिन देवकी ठीक पाँच बजे मालविका के घर पर आ गई । मेहमान तो उसे मालविका का होना था लेकिन उसकी आवभगत में आनंद ही दो घंटे तक लगा रहा। उसने ही देवकी को पूरा घर ले जा कर दिखाया तथा बातें करता रहा। चलते समय देवकी ने कहा “अब हम आपके घर में हैं तो आप भी हमारे घर आइए आनंद बाबू ….और मालविका तुम भी आना ।”
अब मालविका को यह शब्द खटके। दोस्ती तो मेरी थी लेकिन अब मैं दूसरे दर्जे की व्यक्ति बन गई । मुख्य आमंत्रण तो आनंद को है । मैं तो केवल साथ में आने वाली होकर रह गई । मालविका ने दो टूक कह दिया “हमारा तो आना-जाना मुश्किल रहता है । कभी किसी समारोह में मिलेंगे।” लेकिन आनंद ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया कहने लगा ” अगले रविवार को हम लोग शाम पाँच बजे पहुँच जाएँगे ।”
मालविका दंग रह गई थी ।देवकी और आनंद का इस तरह मिलना उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं आ रहा था लेकिन अब क्या किया जा सकता था ! बाजी हाथ से निकल चुकी थी । फिर तो आए दिन की यह मिलने -जुलने की बातें होने लगीं। बिना मालविका को बताए हुए आनंद देवकी के घर जाने लगा और दिन दिन भर वहीं पर बिताना उसने शुरू कर दिया । मालविका उदास रहने लगी ।
एक दिन तो हद हो गई । आनंद घर से गया और फिर पूरी रात नहीं आया । मालविका फोन लगाती रही लेकिन आनंद में नहीं उठाया । अगले दिन भी आनंद का कोई पता नहीं चला । तीन दिन बाद आनंद का फोन आया। कहने लगा “मेरी फिक्र अब मत किया करो । तुम अकेले रहना सीख लो मालविका । अब मैं तुम्हें तलाक देकर देवकी से शादी कर रहा हूँ।”
सुनते ही मालविका बेसुध होकर जमीन पर गिर पड़ी। काफी देर बाद जब होश आया ,तब उसने अपने मायके वालों को फोन मिलाया । देवर तथा ननद के घरों पर भी फोन से सारी बातें बताईं। धीरे-धीरे घर पर भीड़ जुड़ने लगी। सबने मालविका से सहानुभूति प्रकट की लेकिन मालविका की बहन की बेटी ने एक बात बहुत खुली हुई कह दी “मौसी तुमने अपने आपको उम्र से दस साल बूढ़ी बना रखा है । न ढंग से पहनती हो ,न चेहरे पर कोई साफ – सफाई का ध्यान रखती हो ।बाल बिखरे हैं और एड़ियाँ फटी हुई हैं। मौसा जी भी क्या करें ! वह कोई बूढ़े तो हो नहीं गए ?”
सुनकर मालविका ने इस बार कुछ नहीं कहा । उसे देवकी के कहे गए शब्द याद आ गए और वह धीरे-से बुदबुदाई “तुम ठीक कह रही हो । गलती मेरी भी है ।”
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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