” विलुप्त आत्मीयता “
डॉ लक्ष्मण झा”परिमल् ”
==============
युग बदला
हम प्रगति के
ऊँच्चतम शिखरों
पर चढते गए !
हरेक कल्पनाओं
को अपने प्रयासों
से साकार करते गए !!
कबूतरों के युगों
को हम अबतक याद करते हैं !
हम अभी तक दूत,डाकिया
और टेलीग्राम की बात करते हैं !!
अब हम बहुत दूर …
निकल पड़े हैं !
ऊँचाईयों को छूने लगे हैं !
पर ह्रदय में एक पीड़ा आज भी है
हम कुछ न कुछ आत्मीयता खोने लगे हैं !!
===========================
डॉ लक्ष्मण झा”परिमल् ”
दुमका