विरोधी।
उनके सीने मे भी कुछ दबे से राज हैं ।
उसको पूछना चाहा,तो न जाने उन्हे कैसा ऐतराज है ।
कोई तो जरूर है जो उन्हे भङका रहे हैं ।
किसी ने तो आग लगाई ही है ।
नही तो ये धुआँ फिर कहां से आ रहे हैं ।
ये क्रोध वैसे ही आते नही है ।
बुद्धि भले ही क्रोध मे क्षीण हो जाती है ।
पर कुछ करने की रेखाएं उत्कीर्ण हो जाती है ।
क्रोध मे उठाया गया कदम बुरा हैं या भला हैं ।
या फिर कोई बला है ।
रूका कोई कब हैं ।
जब वो अपनी धुन मे चला है ।
शांति से बाते बहुत हो चुकी है ।
अब तो ये निर्णय की घड़ी हैं ।
बात अपने इज्जत पर आन पड़ी है ।
अब बताओ तुम्ही हमको यह भी।
चरित्र से अब क्या चीज बङी है ।
अब दूध-दूध का होगा पानी का पानी ।
कौन है झूठा कौन सच्चे का शानी।
पहले तो मैं कुछ बोलता नही हूं ।
पर बोलता हूँ जब तो ।
फिर किसी की सुनता नही हूं ।
झूठे आरोपो का खंजर न घोपो ।
जो भी कहना है साफ-साफ कहो न ।
घबराहट-सी चेहरे पर क्यूं दिख रही है ।
जब कुछ भी तुम किए ही नही ।
तो सहमे से रहकर ऐसे डरोना ।
कोहरा हो कितना भी घना ।
सूर्य के सामने न हैं वह कभी टिका ।
झिक -झिक सुनने की आदत नही है ।
जो भी कहना है, मुख पे कहो तुम।
होगी सच्चाई गर तो समर्थन करता हूं ।
अफवाहो के सारे पिण्ड छुङा दूं ।
हवाओ के साथ-साथ कभी-कभी धूल और तृण भी है उङते ।
मतलब इसका यह न हुआ कि।
धूल और तृणो के भी पंख निकल गए हो ।
वो किसी लड़की से गर बात कर रहा है।
जरूरी नही वह उसकी प्रियतमा ही हो।
बहन-भाभी या अन्य कोई रिश्ते मे हो सकती है ।
पर ये घटिया सोच ।
क्या-क्या सोचती है ।
नजरिए को बदलो ।
नजारा बदलेगा ।
आसमान का सितारा ।
क्या खूब चमकेगा ।
लोगो का घर-द्वार चहकेगा ।
जीवन की बगिया मे खुशियो का फूल महकेगा ।
प्रेम से ही लोगो ने दिल को हैं जीता ।
चाहे हो अंगुलीमाल डाकू या अप्सरा तिलोत्तमा ।
क्रोध ही सब कलह की जननी है।
इसी से छल,अपराध,नृशंसता पला है ।
इतिहास है इसका गवाह हमेशा ।
गर सूर्योदय हुआ तो फिर वह ढला है ।
वो अपने ही आग मे जलकर मरा है ।
यदि रत्ती भर भी कलंक लगेगा ।
चरित्र का ये दाग,ये विश्वासघात ।
दुनिया के किसी भी सरफेक्सल से न छूटेगा ।
मां सीता की भी अग्नि परीक्षा हुई थी ।
धरती फट इसकी साक्षी बनी थी।
समा गई मां सीता धरती के अंदर।
ये दुनिया की निंदा, चुगली का समंदर ।
बङा विस्तृत है इसका अम्बर ।
सीता मां भी कभी इसका शिकार हुई थी ।
रामजी के क्रोध मे तिरस्कृत हुई थी ।
पश्चाताप करने से फिर हो भी तो क्या हो ।
जब आग ही जलकर राख हो गई हो ।