विरासत की जमीनों को ..सुशील यादव ..
बदल मेरे छत को भिगोने नहीं आते
आसान से सदमो में रोने नहीं आते
रूठा रहता मेरे जज्बात का मासूम
क्या बात इधर बिकने खिलौने नहीं आते
बंजर मिली हमको विरासत की जमीने
क्या काटेंगे सोच के बोने नहीं आते
हैं मन्द हुनर मेरी किस्मत के जुलाहे
हिस्से में तरीके से बिछौने नहीं आते
कई दिन से हुआ आदत में शुमार
राते नहीं कटती घर सोने नहीं आते