विरता का राग
ले कर असि उठा
महाकाली का रूप सजा
प्रचंडिका वेग धार
खुद को खुद पर वार
शीश काट अब दो-चार
वक्त की यही पुकार
भर ले तू अब हुँकार
कदम बढ़ा दो से चार
हालात पर कर प्रहार
महाप्रलय की भर हुँकार
वक्त करवट मारेगा
तुझ पर सब कुछ वारेगा
गूँगे होंगे सब वाचाल
डर भागेगा तुझसे काल
कौन कहाँ माई का लाल
धरणी होंगे ऐसे भाल
कर पुख्ता मन को इतना
तन को ढॉक रखेगी कितना
अब प्रलय आ जाने दे
हवन कुंड सज जाने दे
काट सिर चढ़ा बली
जिन घिर आई कली
विरह गाने का वक्त नहीं
व्यथा सुने वह तख्त नहीं
तुझे नहीं बिकना है
महाभारत नव लिखना है
तब आबरु रुके प्रहार
काट मूंड गले में धार
सब की नहीं जरूरत है
आ जाओ केवल दो चार
थाल सजा खड़ी भारती
विजय तिलक को तैयार
छटजाएगी दुख की बदली
मिल जाएँगे सब अधिकार
छोड़ आंसू बहाना पान करना सीख ले भारतीय सूता तू
भाग अपना लिख ले
सब शक्ति तू अवतारी
कहाँ रही अब बेचारी
नार कोख से जन्मती
इसलिए तू है नारी
धरती में हरियाली भरती
पतझड़ तुझ पर क्यों आता
बल भीतर तेरे कितना
वेद पुराण गावेै गाथा
अंधों को सब कुछ दिखा दे
बहरों को राग सुना दे
जो भूनते हवस तवे पर
उनको आज तू भूना ले
छोड़ विरह के गीत सारे
वीरता का राग सुना दे !