.: विधा सयाली छंद
.: विधा सयाली छंद
अपने
सपनो मारते
दुखों छिपाते सहसा
छलक जाती
आंखे
अक्सर
स्याह रात
सर्द,निस्तेज मुख
मध्य स्वप्न
तेजस्वी
सृजन
पहले ही
तोड़ देती दम
और ठंडी
आहे
संकीर्ण
सीलन परंपराएं
सिमट जाती अक्सर
मध्य स्वप्न
ओजस्वी
चोट भूला हिना
रच जाती
घरसंसार में
पं अंजू पांडेय अश्रु