विधा-वर्ण पिरामिड
अभिलाषा
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हे
दाता
मन ने
हमेशा ही
स्नेह तलाशा
साथ हों अपने
यही है अभिलाषा।
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ऐ
मेरे
वतन
तुझे न दूं
कभी हताशा
तुझ पे मिटूं मैं
यही है अभिलाषा।
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हे
माता
कभी भी
तुझको मैं
न दूं निराशा
तेरी सेवा करूं
यही है अभिलाषा।
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मैं
तेरे
चरणों
का सेवक
मन की भाषा
तुम सुन लेना
यही है अभिलाषा।
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ओ
ठंडी
बयार
पुरवैया
तुझसे आशा
लाए तू मितवा
यही है अभिलाषा।
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री
सखी
सुन ले
पीड़ा मेरी
दे तू दिलासा
मीत मेरे आवें
यही है अभिलाषा।
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रंजना माथुर
दिनांक 15/12 /2017
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©
अजमेर (राजस्थान )