विधा:”चन्द्रकान्ता वर्णवृत्त” मापनी:212-212-2 22-112-122
विधा:”चन्द्रकान्ता वर्णवृत्त”
मापनी:212-212-2 22-112-122
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साथ हमने बनाया—–जानो तुम भी बनाना।
राज़ ज़ावाज़ सोचो — कैसे मिलके दिखाना।।
जागिनी हो तिहारी — भूलो जब हो निशाना ।
मौन सोते मिलेगा —– अवसर तो ये सुहाना ।।
हो गया जब अँधेरा —–सोचो तुम मुस्कराया।२
जागते सुस्त सारे —- अब तो सोकर लुभाया।।
मस्त मन से सुनाना — जीवन में सुख को पाया।
रागनी चुप समाई — कैसे पल ठहरे बनाया।।
२ .
Indra Narayan Rai
गणावली- रगण रगण मगण सगण यगण
ऽ।ऽ ऽ।ऽ ऽ,ऽऽ ।।ऽ ।ऽऽ
212 212 2, 22 112 122
नाथ मेरा यहाँ है –जानो कुछ भी नहीं है
दुष्ट ठहरे लगे सा –मानो रहना सही है।
पेट खाली रहे जो –सस्ता कुछ तो न होगा
मात खाते चलेगी –आदत शम तो न होगा ।
शीत धोखा नहीं है , साथी बनते सभी हैं
भूल होती यही तो -जो वे रहते कभी हैं।
सोचनी हो छली सी –जाने नित वो बड़ी वे
हाय वो रुष्ट देते —- राहे रहे तड़ी से। .
रेखा मोहन पंजाब