विदेशी भाड़ खाकर जो एजेंडे चलाते हैं
आवाम को बांटने की वो, कोशिशें तमाम करते हैं
मजबूत रिश्तो के धागे, कोशिशें नाकाम करते हैं
कभी मजहब, कभी जाति, कभी भाषा को रोते हैं
विदेशी माल खाकर वो, एजेंडे चलाते हैं
कभी बहकाते हिंदू को, मुस्लिम को डराते हैं
बांटकर अगड़े पिछड़े में, मिशन अपने चलाते हैं
तरक्की मुल्क की उनसे, कभी देखी नहीं जाती
इरादे नापाक हैं उनके, जलन से जल रही छाती
भेजकर आतंकवादी, हरकतें नापाक करते हैं
कहने को पड़ोसी हैं, काम दुश्मनों के करते हैं
बांटते कौम फिरकों में, मुल्क बदनाम करते हैं
कई गजनबी हैं अंदर, कई जयचंद बैठे हैं
खाकर मुल्क की रोटी, दिल बेंच बैठे हैं
सजग रहना है जन-जन को, छद्म ये भेषधारी हैं
भारतीय अस्मिता को ये, जहर भरी कटारी हैं
सुरेश कुमार चतुर्वेदी