विदाई के बाद आई बेटी की याद
” विदाई के बाद आयी बेटी की याद ”
तुम मुझ सी हो या,
मैं तुम सी हूँ।
पहेली सुलझाने में ही,
वक्त गुजर जाता है।
क्या कहूँ क्यों तेरी विदाई पर,
यह दिल भर सा आता है।
क्या करूं मेरा,
अभिन्न अंश है तू।
तुझसे दूरी का सोच कर ही,
यह दिल घबराता है।
पर जानती हूँ मैं कि,
बहादुर बेटी की माँ हूँ ना।
इसलिए हर पल तेरी राहों,
को सितारों से सजाया है।।
अब तुझे भी है,
एक बगिया को महकाना।
हमने भी नानी बनने का
अरमान अब दिल में सजाया है।
मेरी गुड़िया भी एक दिन
लायेगी प्यारी सी गुड़िया।।
यह सोच कर ही,
नादान दिल यह हर्षाया है,
तुम्हारे सारे पंसद के खिलौनों को
एक बार फिर से मैने करीने से लगाया है।
नेहा अग्रवाल नेह