विजय पथ
कविता
विजय पथ की राह कठिन है
अगर मगर कहाँ ऊँचा तल है
सहज नहीं इस पर चल पाना
संकल्पी का ही संभव जाना
दृढ़ निश्चय होता है जिसका
विजय लक्ष्य ही जीवन उसका
लक्ष्य साधने बढ़े अकेला
संकट सहता सभी झमेला
संघर्षों से जूझ जूझ कर
बढता आगे सम्हल सम्हल कर
गिरता नीचे दोष न देता
कहाँ कमी हुई यही सोचता
जो मिलते हैं लक्ष्य साधने
प्ररित करता चलते रहने
अपनी धुन का होता पक्का
चलता रहता सह सह धक्का
जीत हार को गले लगाता
विजय मार्ग पर बढता जाता
सफल देख संगी बन जाते
बिन बुलाए ही मार्ग दिखाते
विजय पथ की हटती बाधा
आत्मविश्वास जिसने भी साधा
जिसके मन में रहती शंका
फतह नहीं उसको पथ लंका ।
राजेश कौरव सुमित्र