विचित्र हैं संयोग अभिनय के
चरित्र के आधार की समझ न हो,
तो पहचान चलचित्र बन जाते है.
अक्ल बडी के भैंस,
पार्टी बडी के नेता.
पिल्ला पालूंगी जरूर चाहे जान चली जाइयो.
सब यथार्थ हो गया.
कलपुर्जों पर आश्रित आदमी,
खुद से जियादा विश्वास,
एक नींबू सात हरीमिर्च बांधकर सुकून महसूस करता है,
एक पाहन का पूजन,
उसकी देखरेख में ज्यादा मस्त है
कुत्तों को भोजन.
गाय को रोटी.
वट,तुलसी, पीपल पूजन.
चौराहे पर तर्पण.
नौ दिन लडकियों का पूजन.
पंद्रह दिन कौओं की तलाश.
नहीं गात में हलचल,
चलचित्र से चरित्र की खोज,
विचित्र है अभिनय के संयोग.