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2 Jun 2022 · 1 min read

✍️वास्तविकता✍️

✍️वास्तविकता✍️
——————–——————-//
गुजरा बचपन उस चाल में जहाँ
पुलिस का काफी पहरा होता था
पीछे चाल सामने थाना होता था
पिता मेरे कर्तव्यदक्ष पुलिसवाले थे
घर में कमही थाने में ज्यादा रहते थे
शमी रम्या अन्या फज्जू थे वो दोस्त
पर पाठशाला के अलग थे मेरे दोस्त
बचपन के खेल बड़े थे निराले गीली डंडा
छुपाछुपी और फैराते थे आझादी का झंडा
ऐसा गुजरा बचपन चोरपुलिस के खेल में
मैं पुलिस होता था बाकि चोर थे खेल में
अब मै उम्र से बड़ा हूँ तकलीफों के बीच खड़ा हूँ
बड़ी कठिनाइयाँ है आपको बताने के लिए
चोरपुलिस का खेल अब वास्तविकता में बदल गया
पहले मैं खेल में पुलिस हुवा करता था
आज गुन्हेगार का ठप्पा लग गया माथे पे
मैं चोर की तरह भाग रहा हूँ पुलिस मेरे तलाश में…

पढ़नेवाले को यकीन नहीं आयेगा
पर “किसी चीज को सच्चे दिल से चाहो
तो उसे मिलाने में कायनात भी साजिश करती है”,
लेकिन मेरे लिए ये साजिश उलटी पड़ गयी है
और जिंदगी मेरी उलट पलट गयी है
अब मै चोर,पुलिस कोई ओर…..!
———————————————-//
✍️”अशांत”शेखर✍️
02/06/2022

Language: Hindi
2 Likes · 285 Views
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