वासंती तन मन हुआ
वासंती तन मन हुआ
वासंती तन मन हुआ, पीत रंग से प्रीत,
आई वसंत पंचमी, शीत रही है बीत।
माँ विद्या की दायिनी, और वाणी की सेतु,
हृदय कमल आसन करो, माँ प्रज्ञा के हेतु।
परिष्कार कर बुद्धि का, और हृदय की शुद्धि,
भरो कंठ में मधुरता, जिससे हो रस वृद्धि।
पीली सरसों देखकर, किंसुक फूला लाल,
हर सिंगार झरने लगा, पीपल देता ताल।
धीमी धीमी बह रही, शीतल मंद सुगंध,
प्रेमी भंँवरे उड़ रहे, ढूंँढ रहे मकरंद।
इंदु पाराशर