वार तुमने ग़ैर से मिलकर किया
वार तुमने ग़ैर से मिलकर किया
हाय! मेरे साथ क्यों अक्सर किया
ज़िन्दगी थी तू मिरी जाने-वफ़ा
दिल ने क्यों मातम तिरा अक्सर किया
फूल-सी नाज़ुक थी मेरी ज़िन्दगी
तुमने ग़म देकर इसे पत्थर किया
तुमने तो की है रक़ीबों से वफ़ा
दुश्मनों से प्यार यूँ जमकर किया
दास था मैं तो तुम्हारा दिलरुबा
क्यों सितम तुमने मेरे दिलपर क्या
सरनिगूँ हो नींद आती ही वहाँ
हम फ़क़ीरों ने जहाँ बिस्तर किया