वह है तो सब सम्भव है
सड़कों के मोड़ पर,
गलियों के छोर पर
उसके ही चर्चे हैं –
‘वह है तो सब सम्भव है।’
दर्द से खिंचते हैं ओष्ठ,
सामना होने पर
मुस्करा कर कहते हैं लोग
‘वह है तो सब सम्भव है।’
कद्दावरों को काट छाँट कर
बना कर बौना कर दिया पैक
लोग नफरत से कहते हैं
वह है तो सब सम्भव है ।’
अच्छे अच्छों की भद पीट दी
रसूखदारों की करदी मिटटी पलीद
सब हिकारत से कहते हैं
‘वह है तो सब सम्भव है।
जयन्ती प्रसाद शर्मा