Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
8 Aug 2017 · 2 min read

वह बूढ़ी

मैं बस में बैठा था । अचानक कुछ लोग एक बूढ़ी को पकड़कर बस में चढ़ा दिया । बूढ़ी काफी गुस्से में थी । बस में ज्यादा भीड़ न थी, बूढ़ी को आसानी से बैठने के लिए जगह मिल गई। बूढ़ी ठीक मेरे पासवाले सीट पर ही बैठी हुई थी। वह काफी कमजोर लग रही थी।
उसकी उम्र भी शायद साठ-पैंसठ के आसपास
थी। बूढ़ी मन ही मन कुछ बड़बड़ा रही थी ।
मैं हरेक मिनट बाद बूढ़ी को देखता पर बूढ़ी को किसी की तरफ देखने की कोई फुर्सत
नहीं थी । वह शायद किसी से बेहद नाराज थी । बूढी की नाराजगी की वजह जानने के लिए मैं उत्सुक हो उठा । समय बीतता गया,
मेरी उत्सुकता बढ़ने लगी । अंत में मैं बूढ़ी से
वजह पूछ ही लिया । पहले बूढ़ी मुझ पर बिगड़ने लगी फिर मेरे अनुरोध पर शांत होकर मुझे सब कुछ बताया ।

वह बूढ़ी एक पेंशन प्राप्त महिला थी जिसके घर में कमानेवाला कोई नहीं और खानेवाला पांच । उस दिन सबेरे जब बैंक में पेंशन के पैसे लेने गई तो लिंक फैलर की वजह से उन्हें
पैसे नहीं मिले । बैंकवालो को हजारों मिन्नतें कर के भी कोई फायदा नहीं हुआ । बैंक से बूढ़ी का घर बहुत दूर था इसलिए वह महीने में सिर्फ एक ही बार घर से निकलती थी वो भी केवल पेंशन के पैसे के लिए । बूढ़ी के पति और एकमात्र लड़का कुछ साल पहले ही
एक दुर्घटना में चल बसे थे । अब उसके घर में बहु और तीन छोटी-छोटी पोतियाँ हैं। बहु
घर एवं लड़कियों की देखभाल में व्यस्त रहने के वजह से सास के साथ बैंक जा नहीं पाती थी । इसलिए बूढ़ी पेंशन लेने अकेली जाती,
लेकिन उस दिन जब उसे पैसे नहीं मिले तो वह आगबबूला हो उठी । पहले उसने बैंकवालों
से काफी अनुरोध किया पर जब पैसे नहीं मिले तो वह बैंकवालों को खरी-खोटी सुनाने लगी । बूढ़ी को बैंकवालें काफी देर तक समझाने की कोशिश की मगर कोई फायदा न हुआ । क्योंकि बूढ़ी को तकनीकी भाषा एवं
यंत्रके बारे में कोई ज्ञान न थी, इसलिए उसे
बैंकवालों की जुबान समझ में नहीं आ रही थी। बूढ़ी को बैंकवालें अंत में निरुपाय होकर
घर जाने की सलाह दी पर बूढ़ी अपनी जिद पर अड़ी रही । आखिर में तंग आकर बैंक के दो चपरासी मिलकर बूढ़ी को बैंक से बाहर लाकर बस में चढ़ा दिया जो मैंने खुद अपने आँखो से देखा था ।

मैं बूढ़ी की आँखो में देखने लगा । उसकी आँखे नम होने लगी थी । वह खिड़की से बाहर झांक रही थी । शायद उसकी आँखे
इस आधुनिक तथा यांत्रिक युग की हर एक चीज को अच्छी तरह देखने एवं जानने की कोशिश कर रही थी ।

Language: Hindi
365 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
ईश्वर के सम्मुख अनुरोध भी जरूरी है
ईश्वर के सम्मुख अनुरोध भी जरूरी है
Ajad Mandori
यूं ही कोई शायरी में
यूं ही कोई शायरी में
शिव प्रताप लोधी
धुन
धुन
Sangeeta Beniwal
होली
होली
डॉ नवीन जोशी 'नवल'
परोपकार
परोपकार
ओंकार मिश्र
कैद है तिरी सूरत आँखों की सियाह-पुतली में,
कैद है तिरी सूरत आँखों की सियाह-पुतली में,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मन के वेग को यहां कोई बांध सका है, क्या समय से।
मन के वेग को यहां कोई बांध सका है, क्या समय से।
Annu Gurjar
पितरों का लें आशीष...!
पितरों का लें आशीष...!
मनोज कर्ण
सितमज़रीफ़ी
सितमज़रीफ़ी
Atul "Krishn"
जीवन में संघर्ष सक्त है।
जीवन में संघर्ष सक्त है।
Omee Bhargava
ज़िंदगानी
ज़िंदगानी
Shyam Sundar Subramanian
दोहा बिषय- दिशा
दोहा बिषय- दिशा
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
मुनाफे में भी घाटा क्यों करें हम।
मुनाफे में भी घाटा क्यों करें हम।
सत्य कुमार प्रेमी
पोषित करते अर्थ से,
पोषित करते अर्थ से,
sushil sarna
3747.💐 *पूर्णिका* 💐
3747.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
जब भी सोचता हूं, कि मै ने‌ उसे समझ लिया है तब तब वह मुझे एहस
जब भी सोचता हूं, कि मै ने‌ उसे समझ लिया है तब तब वह मुझे एहस
पूर्वार्थ
"नजर से नजर और मेरे हाथ में तेरा हाथ हो ,
Neeraj kumar Soni
गजल सगीर
गजल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
मतदान जरूरी है - हरवंश हृदय
मतदान जरूरी है - हरवंश हृदय
हरवंश हृदय
बच्चे
बच्चे
Dr. Pradeep Kumar Sharma
राष्ट्र हित में मतदान
राष्ट्र हित में मतदान
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
ना जाने क्यों जो आज तुम मेरे होने से इतना चिढ़ती हो,
ना जाने क्यों जो आज तुम मेरे होने से इतना चिढ़ती हो,
Dr. Man Mohan Krishna
अगर प्रेम है
अगर प्रेम है
हिमांशु Kulshrestha
अनुभव 💐🙏🙏
अनुभव 💐🙏🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
दर्द ना अश्कों का है ना ही किसी घाव का है.!
दर्द ना अश्कों का है ना ही किसी घाव का है.!
शेखर सिंह
*किसकी है यह भूमि सब ,किसकी कोठी कार (कुंडलिया)*
*किसकी है यह भूमि सब ,किसकी कोठी कार (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
ओ अच्छा मुस्कराती है वो फिर से रोने के बाद /लवकुश यादव
ओ अच्छा मुस्कराती है वो फिर से रोने के बाद /लवकुश यादव "अज़ल"
लवकुश यादव "अज़ल"
#चिंतनीय
#चिंतनीय
*प्रणय*
"समरसता"
Dr. Kishan tandon kranti
मुझे जीना सिखा कर ये जिंदगी
मुझे जीना सिखा कर ये जिंदगी
कृष्णकांत गुर्जर
Loading...