वह गाती एक गीत
वह गाती एक गीत,
अपने होने का, बहने का,
तीव्र गति से, तूफान से,
बयांँ करती अपने दुख-सुख,
कभी ऊंँची इमारतों पर,
कभी घने वन में,
सनसनाती, मुस्कुराती, रेंगती,
गुजरती हुई गीत गाती ।
ठहरती,टकराती,पलटती,
गिरती-पड़ती फिर उठती,
बाधाओं को तोड़ती, बढ़ती,
शांत रहती,कुछ सुनाती,
कभी ऊंँची पहाड़ियों पर चढ़ती,
सागर के तल पर टहलती,
उमंग के गीत सुनाती,
बहती जाती,गीत गाती जाती।
#रचनाकार- बुद्ध प्रकाश,मौदहा (हमीरपुर)।