वही बस्ती, वही टूटा खिलौना है
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हज़ज मुसद्दस सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222
वही बस्ती, वही टूटा खिलौना है
वही अलगू,मिया जुम्मन का रोना है
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बना जाते सलीके से मुझे लायक
यहाँ मिटटी को ढूढो यार सोना है
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सुना बनते यहाँ रिश्ते तरीके से
किसे मोती कभी आया पिरोना है
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वफा के बीज डालो ये पता तो हो
खफा मौसम या किस्मत आप बौना है
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उसे पैगाम दो, है खैरियत मेरी
जिसे काँटे बदन मेरे चुभोना है
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तरीके से मिला करती खुशी कल तक
अभी उस दौर का सपना सलोना है
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सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ.ग.)
susyadav7@gmail.com
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