वही तङप का जुनून है ।
बढ चले हम आगे डाक नदी और पहाङ को ।
एक बार चल पड़े फिर हम दहाङ को ।
सूर्य न निकलता कभी शाम को ।
स्वाद है इसका कैसा पीना है इस जाम को ।
जब तक न मिलेगी मंजिल ।
तब तक न सुकून है ।
अभी भी तङप का वो जुनून है ।
शांत है भले दिमाग पर उबल रहा खून है ।
लक्ष्य को पाने के लिए ।
अभी भी तङप का वो जूनून है
Rj Anand Prajapati