*वर्ष दो हजार इक्कीस (छोटी कहानी))*
वर्ष दो हजार इक्कीस (छोटी कहानी))
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दस किलो वजन के लड्डू के पैकेट तैयार करा कर लल्लू कुमार बाँटने के लिए घर से निकले । कुछ पैकेट चार-चार लड्डूओं के थे । किसी में आधा किलो ,किसी में एक किलो लड्डू थे ।
सबसे पहले मंदिर में जाकर भगवान जी के चरणों में आधा किलो का पैकेट रखा और कहा ” प्रभु ! बिन माँगे तुम छप्पर फाड़ कर दे देते हो ,यह आज पता चला । धन्य हो प्रभु ! ” पुजारी जी की समझ में कुछ नहीं आया । लेकिन फिर भी भक्त की श्रद्धा से उनको प्रसन्नता थी ।
उसके बाद मोहल्ले के घर-घर जाकर चार-चार लड्डू का पैकेट बाँटा गया ।मोहल्ले में सबको पता था कि लड्डू किस लिए बाँटे जा रहे हैं । सब ने कहा “चलो भाई ! तुम्हारी नौका पार हो गई लल्लू । वरना लटके रह जाते ! ”
लल्लू हर घर से मुस्कुराहट बिखेरते हुए बाहर निकले । फिर शहर में दूर-दूर जो रिश्तेदार और करीबी लोग रहते थे, उनको आधा-आधा किलो के लड्डुओं के पैकेट जाकर बांटे । स्कूटर पर जाकर लड्डू बाँटने के कार्यक्रम के कारण समय कम लगा । ढाई-तीन घंटे में सब जगह लड्डू बँट गए। अनेक स्थानों पर लल्लू का चाय पिलाकर स्वागत किया गया । सब के मुंह पर एक ही बात थी “चलो नौका पार हुई । किनारे पर लग गए । ”
लल्लू कुमार जब घर लौटे और खिलखिलाते हुए मुख के साथ प्रविष्ट हुए ,तो अम्मा ने कहा ” इतना ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है । पास होने के सर्टिफिकेट पर वर्ष 2021 लिखा रहेगा । सबको पता है ,कैसे पास हुए ? ”
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा , रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451