वर्षा गीत
गीत- १
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छम-छम वर्षा की बौछारें,
खूब सुहाती है सबको।
राग मधुर गाया करती हैं,
सबके मन भाया करती है।
भीगे तन का रूप मनोहर,
सहज निखारा भी करती हैं।
छतरी रंग बिरंगी में भी,
सहज रिझाती है सबको।
छम-छम वर्षा…….
हरी भरी हो गई धरा है,
जगह जगह जल खूब भरा है।
भीगे हैं वृक्षों के पत्ते,
सड़कों पर पानी ठहरा है।
मस्त मस्त सी सहमी सहमी,
चाल लुभाती है सबको।
छम-छम वर्षा….
खूब भीगते मौज मनाते,
स्पंदित हर तन मन हो जाते।
पावस के सुन्दर गीतों से,
छोर धरा के भी गुंजाते।
भेद भावना छोड़ खुशी से,
साथ मिलाती है सबको।
छम-छम वर्षा….
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गीत- २
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बरसात में गीतों के स्वर
घुलने लगे हैं
नेह के उर में
बजी प्रिय तान है
ओंठ पर इक
मदभरी मुस्कान है
धड़कनों के बीच
कोमल से हृदय में
स्नेह के मृदु भाव फिर
पलने लगे हैं।
बरसात में गीतों के स्वर
घुलने लगे हैं
कोयलों की कूक से
फिर गूँजती है घाटियाँ
और झूलों से पटी
बौरा रही अमराईयाँ
सुप्त मन में
चाहतों के स्वप्न फिर
जगने लगे हैं।
बरसात में गीतों के स्वर
घुलने लगे हैं
तृप्त होती है धरा
जल बरसने से
कौंध जाती है तड़ित
घन सरसने से
श्रावणी त्यौहार है
घर द्वार मन्दिर खूब सब
सजने लगे हैं।
बरसात में गीतों के स्वर
घुलने लगे हैं
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– सुरेन्द्रपाल वैद्य।
मण्डी (हिमाचल प्रदेश)