वर्ण पिरामिड (मैं कौन हूं?)
मैं
पूछ
रहा हूं
स्वयं से
अपना राज
मिल रहा साथ
जीवन में सबका।
ये
नहीं
संयोग
मैं कौन हूं
अनजान सा
पाकर बंधन
भूला पहचान।
हे
मन
अब तो
कुछ बोल
जगत झूठा
कहते है लोग
फिर मैं कौन हूं।
तू
रहा
सदा ही
साथ साथ
जीवन भर
खुलकर बता,
राजको मैं कौन हूं।
ले
सुन
पुकार
आवरण
हटा उतार
इंसान रूप में
भटका देवता है।
है
पूरा
आसार
साधारण
नहीं खास है
परमात्मा अंश
अविनाशी आत्मा है।