वफ़ा करने वालों का दम देखते हैं
122 + 122 + 122 + 122
कहाँ हुस्न वाले सितम देखते हैं
वफ़ा करने वालों का दम देखते हैं
कभी भी न जाना मिरा हाल उसने
कहाँ मेरी आँखें वो नम देखते हैं
उन्होंने ही मजनू पे पत्थर उठाये
वफ़ा की मिसालें जो कम देखते हैं
हबीबों की चिंता भला कब उन्हें थी
रक़ीबों की जानिब सनम देखते हैं
बनाकर दिवाने का भेष यारो
तमाशा-ए-उल्फत भी हम देखते हैं