* वन्दे मातरम् –मेरा नजरिया *
मैं सर्वप्रथम मातृभूमि,कर्मभूमि,जन्मभूमि की मानस पूजा करता हूं।उपन्यासकार श्री बंकिमचन्द्र चटर्जी ने अपने उपन्यास आनन्दमठ में जिस गीत की सर्जना की वह आज़ादी की लड़ाई को आगे बढ़ाने एवं स्वतन्त्रता के मतवालों के दिलों में जोश भरकर उनके कार्यों की क्रियान्विति एवं मातृभूमि को स्वतंत्र कराने, आगे क़दम बढ़ाने एवं उत्साहवर्धन हेतु की । इतना ही नही मातृभूमि वंदना के माध्यम से आजादी के दीवानों ने सर्वप्रथम माँ एवं मातृभूमि के महत्त्व को समान रूप से स्वीकार ही नहीं किया बल्कि अपनी माँ की सुरक्षा का दायित्व जिस प्रकार हर पुत्र का दायित्व होता है,उसी प्रकार मातृभूमि जो हमें अपने आँचल की छाँव, पोषण के लिए अन्न एवं फल देती है, उसी प्रकार अपनी मातृभूमि के द्वारा दिए गये उपादानों से वह अन्न व रस ग्रहण कर पल्लवित पोषित होता है।
1:-वन्दना करूँ क्या उसकी जिसने मां सा दिया सहारा अपने खूं को बना पानी
बहा दिता खेतों खलियानों में
वन्दना करूँ क्या उसकी जिस पर हमने जीवन पाया तन पाया और धन पाया मन को पूरण हमने पाया गाया जावे गीत जो इसका उससे ज्यादा महिमा इसकी इसलिए कहता हूँ मैं मां कैसे करूँ मैं तेरी आराधना वन्दना स्वीकार करो माँ जननी माँ सी तुम हो माँ
अब जरा तुम ही बतला दो कर्ज मैं तेरा उतारूँ कैसे हे माँ तूं है वन्दन योग्य तेरे जैसा नहीं सुयोग्य वन्दना करूँ क्या मैं उसकी जिसने माँ सा दिया सहारा
निस्वार्थ सबका पोषण करती कहते हैं हम जिसको धरती समता का भाव है जिसमे, विषमता का खिन नाम नहीं
जात नहीं,कोई धर्म नहीं,भेद यह सब झुठलाये इसने वन्दना करूँ क्या उसकी,जिसने सब को माँ सा दिया सहारा वन्दना करूँ क्या उसकी ।।
इस मातृ वन्दना के पश्चात आपने मेरे आंतरिक भाव एवं वन्दे मातरम राष्ट्रगीत के प्रति मेरे उद्गारों को समझा होगा ।
1मैंने वन्देमातरम राष्ट्रगीत को राष्ट्र की स्वतंत्रता को गति और उसकी लय की तरह समझा। जैसे सागर की लहरें उमंग में उछालें लेती हैं और उससे जो शब्द गुंजायमान होता है,वह उस सागर की प्रसन्नता का प्रतीक होता है। उसी प्रकार आजादी की जंग के दौरान वन्देमातरम राष्ट्रगीत के माध्यम से भारत रूपी महासागर के हृदय की तरंगों रूपी जनसैलाब को उछालें खाते हुए देखा है एवं उमंग तथा आनन्द से भरे इस राष्ट्रगीत के कारण ही शायद बंकिमचन्द्र जी ने अपने उपन्यास का नाम ही आनन्दमठ रखा हो ऐसा मेरा मन्तव्य है ।
2 वन्देमातरम राष्ट्रगीत भारत की सांस्कृतिक विरासत का पप्रतीक है। सिंधुघाटी सभ्यता में मातृ शक्ति की पूजा की जाती थी एवं परिवार की मुखिया स्त्री ही होती थी । सभी मंत्री शक्ति का सम्मान एवं पूजा करते थे । भारतीय संस्कृति में भी ऐसे उदाहरण सामने आतें है जहां गार्गी,मैत्रेयी आदि स्त्रियों का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है । विशेषतः देखा जाये तो वन्देमातरम राष्ट्रगीत पर भारतीय संस्कृति की विरासत का व्यापक असर पड़ा है क्योंकि यहाँ के ज्यादातर भारतीय मातृशक्ति को सम्मान की नज़र से देखते हैं। वन्देमातरम राष्ट्रगीत पर भी इसी मातृशक्ति एवं मातृवन्दना की उदात्त भावना का प्रभाव पड़ा है । इसलिए जन्मभूमि को स्वर्ग से भी महान बताया गया है ।
3 भारत की सांस्कृतिक सुषमा का चित्रण – उपन्यासकार ने वन्देमातरम राष्ट्रगीत में प्रकृति का सुरम्य चित्र अंकित किया है एवं हमे मातृभूमि,उसकी प्राकृतिक सम्पदा से किस प्रकार हर्षित,आनन्दित,प्रसन्नचित रहने का संदेश दिया है। जिस प्रकार माँ का पयपान (दुग्धपान) करके हम सन्तुष्ट होते हैं,उसी प्रकार प्राकृतिक संपदा का उपयोग व उपभिग करके हम आनन्दित एवं प्रसन्नचित होत्र हुए ख़ुशी का अहसास करते हैं ।
4 मातृभूमि हमें क्या क्या उपहार देती है ,प्रदान करती है,यह भी वन्देमातरम राष्ट्रगीत में भलीभांति बतलाया गया है । इसलिए हमें अपनी मातृभूमि की वंदना एवं आराधना करनी चाहिए।
5. मातृभूमि वन्दन हेतु उपन्यासकार बंकिमचन्द्र जी ने बताया है मैंने उसे जिस नजरिये से समझा वह कुछ इस प्रकार है,मातृभूमि हमे स्वच्छ जल,अच्छे फल, हिमालय पर्वत से आनेवाली शीतल एवं सुवासित वायु प्रदान करती है तथा हरीभरी यह हमारी मातृभूमि है । अतः हमें अपनी मातृभूमि को जननी के समान सम्मान देना चाहिए ।
6. इस भारतभूमि के वक्षस्थल पर जो फ़लक है और उस फ़लक में जो सितारे हैं एवं सुधाकर जिसकी चमक से रात्रि में रोमांचित होता प्रतीत होता है ।
जैसे नायिका नायक के प्रथम स्पर्श से पुलकित हो उठती है,उसी प्रकार यामिनी या रात्रि का रोम- रोम रोमांचित या पुलकित हो उठता है । इस भारतभूमि पर तरह तरह के पुष्प खिले हुए हैं, जो अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए सन्देश देते हैं कि भारत के भौगोलिक सौंदर्य के अलावा के लोगों के दिलों की सुंदरता भी सूर्योदय की प्रथम किरण के साथ खिलने वाले पुष्पों के समान प्रतीत होती है।सूर्योदय के साथ ही आलस्य त्याग कर वह अपने नित्यकर्म से निवृत होकर विकास एवं कर्मपथ पर अग्रसर होते हैं। भारतभूमि के वक्षस्थल पर उगे वृक्षों की हरीतिमा किसका मन नहीं मोह लेती अर्थात भारतभूमि पर्याप्त वन-वृक्षों से आच्छादित एवं सुशोभित है । ये किस्म किस्म के फूल एवं फल देने वाले वृक्षो से भारतभूमि शोभायमान है ।उसी प्रकार पूर्णतः मानसिक एवं शारीरिक रूप से पुष्ट भारतीय भी परोपकार करके नक्षत्रों के समान इस संसार रूपी फ़लक पर चमकते नज़र आ रहें हैं अर्थात अपनी योग्यता,अहर्ता एवं विद्वता से सम्पूर्ण विश्व को रोशन कर रहे हैं । भारतवर्ष के लोग सभी के साथ मिलजुलकर हास्य-विनोद से रहते हैं तथा एक दूसरे से मधुर शब्दों में बातचीत करते हैं अर्थात दूसरों के हृदय को जीतने की क्षमता भारतवासियों में मौजूद है । यह भारतभूमि हमें सुख एवं वरदान देनेवाली जन्मदात्री माँ के समान है ।
7. भारतभूमि में केवल अबलाओं ने ही जन्म नहीं लिटा है वरन वन्देमातरम राष्ट्रगीत के माध्यम से यह बताया गया है कि यहां महारानी लक्ष्मीबाई एवं अहल्याबाई जैसी सबलों ने भी दुश्मनों ऐ लोहा लिया है ।उन्होंने अपने में शक्ति धारण केने की क्षमता का परिचय दिता है।
8.विद्या,धर्म,हृदय,मर्म और प्राण बनकर शारीर में समानेवाली,भुजाओं में शक्ति भर देनेवाली केवल मातृभूमि ही है ।हृदय में भक्ति बनकर मन रूपी मंदिर में हे भारतमाता तुम ही समायी हो ऐसी माँ जो सर्वदा मन मंदिर में विराजमान रहती है। मैं उसकी वन्दना करना अपना परम् कर्तव्य समझता हूं ।मैं उस माँ की वंदना केट हूँ जिसने नर मुंडो की माला धारण कर रखी है और दुर्गा नाम से जिसे सम्बोधित किया जाता है।कमल समूह में क्रीड़ा करनेवाली कमला अर्थात लक्ष्मी वाणी एवं विद्या देनेवाली माँ सरस्वती मैं तुम्हें बार बार नमन करता हूं।स्वच्छ,अतुलनीय, अच्छे फल देनेवाली,श्यामलवर्णी, सरलता को धारण करनेवाली,मधुर मुस्कान वाली,आभूषणों से सुशोभित,जीवमात्र को धारण करनेवाली,भरण-पोषण करनेवाली माता मैं तुम्हें नमन केट हूं एवं तुम्हारी वन्दना करता हूं –
मैंने इसे समझा नहीं केवल गीत
समझा हर भारतीय की प्रीत।
माँ के लालन-पालन से होती शुरू रीत
जन्म लेकर जन्मभूमि करना तूं प्रीत
समझा है मैंने इसे भारत का गौरव-गीत
वन्दे कहता हूं माता को
जिस पर जन्मा है ये गीत
मैंने जैसा समझा वैसा पाया राष्ट्रगीत
वन्देमातरम, वन्देमातरम,वन्देमातरम।
?मधुप बैरागी