वज्र सीख
प्रभुहि न देहि क्लेश दुःख ।
सर्व कारण आप ही ।।
उलूक देख न वार मे ।
सो दोष रवि नाहि ।।
हरेक मनु गुलाम मनहि ।
जीवन सफल न सोय ।।
सोई जीवन सफल है ।
जाकर मन वश होय ।।
मन पतंग ध्यान डोर स ।
उङत जात नभ माहि ।।
डोर को कर संभल रख ।
छूटत पाताल जाहि ।।
ध्यान ज्ञान की खान है ।
जस जल सिंधु समाहि ।।
लगा डुबकी मुक्ता मिले ।
न तो देख परछाहि ।।
शहर गए धन अर्जन को ।
लूट लिए सब दलाल ।।
चड्ढी बनियान बच गए ।
चलो समझ के चाल ।।
कोरोना से डरोना ।
करो सुरक्षा सारे ।।
मास्क लगा धवल बनो ।
चमकने दो तारे ।।
दुनिया रीत विपरीत है ।
क्या कहु मै भाई ।।
जाहि अहि क्षीर पिलाई ।
वहि सो डस्यो जाई ।।
भौतिक विधा पाय कर ।
मनहि कर अंहकार ।।
सो ज्ञान क्षण विनसि जाय ।
जब पहुंचे यम द्वार।।
नारि नरक का द्वार है ।
या अमृत की खान ।।
नारी पाछे जो पङा ।
सो कछु दिन मे जान ।।
यह दुनिया माया नगरी ।
दिखाए ऐसे माय ।।
सुर -नर मुनि सब देखकर ।
हो जाते भरमाय ।।
रात खाना खाई के ।
मलमल दियो बिछान ।।
चादर ताने सो गये ।
कुछ न किया प्रभु ध्यान ।।
## RJ Anand Prajapati ##