वक्त बड़ा चंचल…
पीठ किए बैठी हैं खुशियाँ, गुमसुम सुख के पल
बाहर पसरा सन्नाटा है, पर भीतर हलचल
स्वार्थ-ग्रसित हो पुत्र मनु के
निज विवेक खोते
अपने ही हाथों से अपना
अपयश खुद बोते
बुद्धि भ्रमित हुई है इनकी, चरने गयी अकल
कर ले तू मन भर मनमानी
भोंक न पीठ छुरा
हो मत मद में अंधा इतना
दिखे न भला-बुरा
आज नहीं तो कल पाएगा, निज करनी का फल
तेरी इस फितरत के आगे
समय भी लाचार
जीवन दात्री माँ प्रकृति पर
कर न अत्याचार
इक दिन तुझको ले डूबेगा, मानव तेरा छल
भले-बुरे दिन आते-जाते
व्यर्थ न कर क्रंदन
तप्त आँच में संघर्षो की
मन होता कुंदन
फिर आयेंगे लौट दिवस वे, आज नहीं तो कल
एक जगह कब टिक कर रहता, वक्त बड़ा चंचल
-डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)