वंचित
तेरी बगिया के
एक पेड़ की डाली पर
एक फूल महका
वह बगिया तेरी थी
पेड़ भी तेरा
उसकी डाल भी तेरी
फूल भी तेरा
उसकी महक भी तेरी
मेरा तो कुछ भी नहीं
इस फूल की महक भी नहीं
हवाओं ने भी तो आजकल
अपना मुंह फेर लिया है
मुझसे
वह भी तो बह रही है
उल्टी दिशाओं में
उन्होंने अपना रूख
लगता है
हमेशा के लिए पलट लिया है
बहकर नहीं आ रही मेरे घर के दरवाजे तक
ताकि मैं फूल की खुशबू से
वंचित रह जाऊं।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001