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1 Jun 2022 · 1 min read

✍️आरसे✍️

✍️✍️आरसे✍️✍️
——————————————————-/
माझ्याच नकला आता आरसे करू लागले
आरसेच मला आता आरसे दाखवु लागले

अंतरंग माझे कुठल्या गर्दित हरवले कळेना
मला शोधण्याचा प्रयास आरसे भासवु लागले

झिजवले देह ज्यांनी माझ्यासाठी चंदनापरी
दरवळणारा सुगंध त्यांचा आरसे हिरावु लागले

कसा पडला असावा मोह परिसाचा आठवेना
बनावटी सोन्याचा मुकूट आरसे दिखावु लागले

उन्हातला मी वाटसरु मला न लोभ गारव्याचा
उगाच माझ्या सावलीला आरसे सतावु लागले

तुझ्याच शब्दांचे मोहजाळ होते सहज फसलो मी
माझ्या वेदनेला हि आता आरसे हिणावु लागले

असाच मी वणवणतोय शोधित वाटा सत्याच्या
पुन्हा त्या डाव्या दिशांना आरसे खुणावु लागले
————————————————————-//
✍️”अशांत”शेखर✍️
26/05/2022

Language: Marathi
293 Views
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