लोग आपन त सभे कहाते नू बा
लोग सगरो पुरनका ओराते नू बा |
रीति रिवाज सगरो भुलाते नू बा |
चांद पर लोग दुनिया बसावे चलल,
खत्म धरती हो जाई सुनाते नू बा |
गाँव जबसे शहर में समाइल हवे,
नेह सबकी हृदय से झुराते नू बा |
का हकीकत बताईं छुपाईं का हम,
झूठ से सांच देखऽ लुकाते नू बा |
ओठ पर बा हँसी आजु बस नाम के,
लोर अँखियन में सबकी बुझाते नू बा |
आजु केकरा प केहू भरोसा करो,
खून रिश्तन में रोजो सुनाते नू बा |
भिंड बा शोर बा फिर भी तन्हाई बा,
‘सूर्य’ आपन त सभे कहाते नू बा |
सन्तोष कुमार विश्वकर्मा ‘सूर्य’