*** लोगों के मुख विवर्ण हो गये ***
9.7.17 ** प्रातः 11.01**
कल के अवर्ण क्यों सवर्ण हो गये
लोगों के मुख क्यों विवर्ण हो गये
स्वार्थ-सिद्धि होती थी,तब-तब वो
ना जाने पराये भी अपने हो गये
दे दे दुहाई जाति की,ज़हर हो गये
सुबह-शाम-दोपहर हवा जो हो गये
ना चैन दिल को ना शुकुं मन को
ना जाने ऐसे -कैसे अपने हो गये
मैं आज खड़ा हूं जिस डगर पर
वो देख अगर-मगर क्यों हो गये
ना बांधो-बन्धो संकीर्णता के तारों से
ये भेद ना जाने, कब अभेद हो गये
अब ना छेद करो दिल की दीवारों में
ना जाने ये अवर्ण-सवर्ण का खेल-खेल
हम क्योंकर शिकार होते हैं इनके
ये क्या अपने भाग्यविधाता हो गये
मैं ना सिमटा ना सिमटूंगा इन दीवारों में
क्या सवर्ण, क्या अवर्ण,खेतरेत हो गये
कल के अवर्ण क्यों सवर्ण हो गये
लोगो के मुख क्यों विवर्ण हो गये
समझाइस करते समझदार हो गये
मेरे वो अपने,जो अपने संग नहीं
देख उनको आज अलग मैं दंग नहीं
क्योंकि पता मुझे था पहले से सब
वो कब-कब कभी हमारे संग नहीं
मैं सवर्ण-अवर्ण में कभी ना बंट पाऊंगा
क्योंकि जो साथ मेरे थे आज साथ वही
मानव से बढ़कर जाति की औकात नहीं
इंसान-इंसानियत से बढ़कर सौगात नहीं
क्यों सवर्ण-अवर्ण-चक्कर में पड़ते हो
ये नेता लेता है सब, ना कुछ देता है
देता कम क्या पीड़ाओं की सौगात नहीं
कल के अवर्ण क्यों सवर्ण हो गये
लोगों के मुख क्यों विवर्ण हो गये।।
?मधुप बैरागी